उत्तरकालीन मुगल सम्राट | मुगल साम्राज्य के पतन के कारण बताओ | uttarkalin mugal samrat | adhunik bharat ka itihas in hindi

उत्तरकालीन मुगल शासक 

3 मार्च, 1707 ई. को अहमदनगर में औरंगजेब की मृत्यु हो गई व मुगल साम्राज्य का पतन तीव्र गति से शुरु हो गया। 1707 ई. के बाद का समय उत्तरोत्तर मुगल काल के नाम से जाना जाता है।

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उत्तरकालीन मुगल सम्राट | uttarkalin mugal samrat


बहादुरशाह (1707-1712 ई.):-

18 जून, 1707 ई. को मुअज्म की सेनाओं ने आजम को सामूगढ़ के निकट जाजऊ के युद्ध में पराजित किया व आजम मारा गया। मुअज्म (शाहआलम) 'बहादुरशाह' की उपाधि के साथ दिल्ली का बादशाह बना।
बहादुरशाह ने औरंगजेब द्वारा लगाया गया जजिया कर समाप्त कर दिया। मेवाड़ व मारवाड़ की स्वतंत्रता स्वीकार कर ली।
सिक्ख नेता बंदाबहादुर के विरुद्ध सैन्य अभियान के दौरान 27 फरवरी, 1712 ई. को बहादुरशाह की मृत्यु हो गई।

जहाँदरशह (1712-1713):-

बहादुरशाह की मृत्यु के उपरांत उसके चार पुत्रों के मध्य उत्तराधिकारी का युद्ध हुआ। जिसमें उसका बड़ा पुत्र उनीज उद्दीन विजय हुआ।
अपने भाइयों को मारकर जुल्फीकार की सहायता से वह जहाँदरशह के नाम से मुगल सिंहासन पर आसीन हुआ।
वह दीर्घ काल तक शासन ना कर सका। 1713 ई. में उसके भांजे फर्रूखसियर ने सैयद बंधुओं के सहयोग से जहाँदरशह का वध कर दिया।

फर्रूखसियर (1713-1719 ई.):-

फर्रूखसियर सैयद बन्धुओं (अब्दुल्ला खाँ और हुसैन अली खाँ) के सहयोग से बादशाह बना। फर्रूखसियर ने अपने पिता अजीमुश्शान की उत्तराधिकार युद्ध में हत्या की सूचना पाते ही पटना (बिहार) में अपने को बादशाह घोषित किया।
फर्रूखसियर ने तूरानी गुट ( मध्य एशियाई मूल) के एक अमीर चिनकिलिक खाँ को दक्कन के छः मुगल सुबो की सूबेदारी प्रदान की तथा उसे निजामुल मुल्क और खान खाना की उपाधि दी।
फर्रूखसियर ने जोधपुर (मारवाड़) के शासक अजीतसिंह की पुत्री से विवाह किया। फर्रूखसियर ने सैयद बंधुओं के प्रभाव को कम करने के लिए उनके खिलाफ षडयंत्र रचने शुरू किए। उसने गुजरात के सूबेदार दाऊद खाँ को संदेश भेजा कि वह हुसैन अली को मार डाले किंतु हुसैन अली ने दाऊद खाँ को मार डाला।
हुसैन अली मराठा सैनिकों के साथ दिल्ली आ गया सैयद बंधुओं ने महत्वपूर्ण अमीरों को अपने पक्ष में कर फर्रूखसियर को अपदस्थ कर 28 अप्रेल, 1719 ई. को उसका वध कर दिया।
फर्रूखसियर को 'घृणित कायर' भी कहा गया है। फर्रूखसियर ने गद्दी पर बैठते ही जजिया कर को समाप्त कर दिया।

रफी-उद्-दरजात (1719 ई.):-

इसे भी सैयद बंधुओं ने ही गद्दी पर बिठाया था। इसकी मृत्यु क्षयरोग (टीबी) से हुई। रफी-उद्-दरजात की सबसे महत्वपूर्ण घटना निकूसिया का विद्रोह थी। निकूसिया अकबर द्वितीय का पुत्र था। यह सबसे कम समय का शासन करने वाला मुगल शासक था।

रफी-उद्-दौला (1719 ई.):-

रफी-उद्-दौला दूसरा सबसे कम समय तक (6 जून से 17 सितंबर, 1719) शासन करने वाला मुगल सम्राट था। उसे अपने जीवनकाल में एक बार महल से बाहर निकलने दिया गया, जब उसने आगरा के लिए प्रस्थान किया था। इसने शाहजहां द्वितीय की उपाधि धारण की।

मुहम्मदशाह (1719-1748):-

1719 ई. मे सैयद बंधुओं ने रोशन को मुहम्मदशाह के नाम से मुगल गद्दी पर बिठाया। यद्यपि मुहम्मदशाह सैयद बंधु जिन्हें राजाओं का निर्माता कहा जाता था, के सहयोग से शासक बना था, किंतु वह सैयद बंधुओं के बढ़ते हस्तक्षेप से तंग आ गया था।
अतः उसने सैयद बंधुओं की शक्ति पर रोक लगाने के लिए एक दल का गठन किया जिसका नेतृत्व चिनकिलीच खाँ तथा सादात खान ने किया। चिनकिलीच खाँ ने विद्रोह कर दिया। विद्रोह को दबाने के लिए सैयद हुसैन अली गया, किंतु उसे धोखे से मार डाला इसके उपरांत सैयद अली को भी गिरफ्तार कर मार दिया गया।
मुहम्मदशाह के शासनकाल में निजामुलमुल्क (चिनकिलीच खाँ) ने हैदराबाद के छः सूबों पर अधिकार कर स्वतंत्र राज्य की स्थापना की। इस राज्य को निजामशाही के नाम से जाना जाता है।
इसी के शासनकाल में फारस के शासक नादिरशाह ने 1739 ई. में भारत पर आक्रमण कर दिया। कहा जाता है कि उसने तैमूर से भी अधिक दिल्ली में रक्त पात किया।
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अहमदशाह (1748-1754 ई.):-

1748 ई. में मुहम्मदशाह की मृत्यु के बाद उसका पुत्र अहमदशाह सम्राट बना। उसने अवध के सूबेदार सफदरजंग को अपना वजीर बनाया।
2 जून, 1754 ई. को वजीर इमादुल मुल्क ने मराठों के सहयोग से अहमदशाह को अपदस्थ कर दिया व अजीजुद्दीन को 'आलमगीर द्वितीय' की उपाधि के साथ मुगल बादशाह बनाया। अजीजुद्दीन जहाँदारशाह का बेटा था।

आलमगीर द्वितीय (1754-1756 ई.):-

55 वर्षीय आलमगीर द्वितीय अपने वजीर इमादुलमुल्क का कठपुतली शासक था। गाजीउद्दीन ने उसे सत्ताच्युत कर उसकी हत्या करवा दी। आलमगीर द्वितीय के बाद अलीगोहर शाहआलम द्वितीय की उपाधि के साथ मुगल बादशाह बनाया गया।

शाहआलम द्वितीय (1759-1809 ई.):-

शाहआलम द्वितीय का नाम अलीगोहर था। शाहआलम द्वितीय और उसके उत्तराधिकारी केवल नाममात्र के सम्राट थे। उसके समय में पानीपत का तृतीय युद्ध (1761 ई. में) तथा बक्सर का युद्ध (1764 ई. में) हुआ था।

बक्सर के युद्ध में पराजित होने के बाद शाहआलम द्वितीय को 1765 ई. में ईस्ट इंडिया कम्पनी से इलाहाबाद की संधि करनी पड़ी, जिसके बाद उसे कई वर्षों तक इलाहाबाद में अंग्रेजों का पेंशनयाफ्ता बनकर रहना पड़ा। 1772 ई. में मराठों के संरक्षण में दिल्ली पहुंचा तथा 1803 ई. तक उनका संरक्षण स्वीकार किया। गुलाम कादिर ने 1788 ई. में शाहआलम द्वितीय को अन्धा बना दिया। 1806 ई. में शाहआलम द्वितीय की हत्या कर दी गई।

अकबर द्वितीय (1806-1837 ई.):-

शाहआलम द्वितीय की मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र अकबर द्वितीय मुगल गद्दी पर आसीन हुआ, जो कि एक नाममात्र का शासक था, इस के शासनकाल में अंग्रेजों की शक्ति में तीव्र गति से वृद्धि हुई। 1837 ई. में अकबर द्वितीय की मृत्यु हो गई।

बहादुरशाह द्वितीय जफर (1837-1857 ई.):-

अकबर द्वितीय की मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र बहादुरशाह द्वितीय (बहादुरशाह जफर) मुगल सिंहासन पर आसीन हुआ। यह अंतिम मुगल सम्राट था। इसके शासनकाल में अंग्रेजों की शक्ति में उत्तरोत्तर वृद्धि हुई। 1857 ई. का विद्रोह अथवा क्रांति इसके शासनकाल की मुख्य घटना थी।
1862 ई. में उसकी मृत्यु हो गई। इसकी मृत्यु के साथ ही भारत में मुगल साम्राज्य का पूर्ण रूप से अंत हो गया।


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