भारत पर अरबों के आक्रमण के क्या कारण थे? | "अरबो के आक्रमण" से क्या प्रभाव पड़ा? | अरब आक्रमण के समय सिंध का राजा कौन था? | मध्यकालीन भारतीय इतिहास

मध्यकालीन भारतीय इतिहास "अरबो का आक्रमण"

भारतीय क्षेत्रो पर प्रथम सफल आक्रमण 712 ई. में मुहम्मद-बिन-कासिम के नेतृत्व में सिन्ध क्षेत्र पर स्थल मार्ग से हुआ। इस समय सिन्ध का शासक दाहिर था। अरबो के आक्रमण के विषय में पर्याप्त सूचना फुतुल-अल-बलदान एवं चचनामा से मिलती है।
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महमूद गजनवी-

यामिनी वंश का संस्थापक अलप्तगीन था। उसने गजनी को अपनी राजधानी बनाया। अलप्तगीन का दामाद सुबुक्तगीन प्रथम तुर्की शासक था, जिसने भारत पर आक्रमण किया।इसी के समय जयपाल ने गजनी पर हमला किया था। सुबुक्तगीन की मृत्यु के बाद उसका पुत्र एवं उत्तराधिकारी महमूद गजनवी गजनी (998-1030 ई.) की गद्दी पर बैठा।
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सुबुक्तगीन की विजयों से उत्साहित होकर महमूद गजनवी ने 1000-1027 ई. तक भारत पर 17 बार आक्रमण किया। उसने इस आक्रमण का उल्लेख विद्वान हेनरी इलियट ने किया है। महमूद का प्रमुख उद्देश्य भारत की संपत्ति को लूटना भी था।
महमूद का प्रथम महत्वपूर्ण आक्रमण 1001 ई. में हिन्दूशाही शासक जयपाल पर हुआ। इस युद्ध में महमूद की विजय हुई तथा जयपाल पराजित हुआ एवं उसने आत्मदाह कर दी। महमूद का दूसरा महत्वपूर्ण आक्रमण मुल्तान पर (1004-05 ई.) हुआ। वहाँ शिया सम्प्रदायी करमाथियो का शासक अब्दुल फतह दाऊद था।
पंजाब में महमूद ने प्रत्यक्ष शासन स्थापित करने का निर्णय किया। उसने भारत में एक सेना गठित की तथा उसकी कमान तिलक नामक हिन्दू के हाथ मे सौपी। महमूद के दरबार मे अलबरूनी, फिरदौसी, उत्बी एवं फारुखी आदि विद्वान थे, इसी के दरबार मे फिरदौसी ने शाहनामा की रचना की। अलबरूनी महमूद के आक्रमण के समय भारत आया जिसकी प्रसिद्ध पुस्तक किताबुलहिन्द तत्कालीन इतिहास जानने का महत्वपूर्ण साधन है।
महमूद का सर्वाधिक उल्लेखनीय आक्रमण गुजरात में समुद्र तट पर स्थित शिव मंदिर सोमनाथ या सोमेश्वर के मंदिर (1025 ई.) पर था। उस समय वहाँ का शासक भीम प्रथम था। इस मंदिर को लूटते हुए महमूद ने ब्राह्मणों समेत लगभग 50,000 हिंदुओ का कत्ल कर दिया गया। महमूद गजनवी की मृत्यु 1030 ई. में हुई।

मुइज्जुद्दीन मुहम्मद गौरी -

12 वी शताब्दी के मध्य में गौरी वंश का उदय हुआ। गौरी साम्राज्य का आधार उत्तर-पश्चिम अफगानिस्तान था। आरम्भ में गौरी गजनी के अधीन था गौर जो वंश प्रधान था, उसका नाम था शंसबनी। मुहम्मद गौरी इसी वंश का था।
भारत पर मुहम्मद गौरी का प्रथम आक्रमण 1175 ई. में मुल्तान पर हुआ। उस समय मुल्तान पर करमाथी जाति के शासक (मुस्लिम) थे। 1178 ई. में गौरी ने गुजरात पर आक्रमण किया, किन्तु भीम द्वितीय ने उसे आबू पर्वत की तलहटी में अन्हिलवाड़ा के युद्ध में पराजित किया। भारत मे यह मुहम्मद गौरी की पहली पराजय थी।
पंजाब में उस समय गजनी राजवंश का शासन था। 1186 ई. में गौरी ने छाल से खुसरव को कैद कर लिया। उसके पश्चात सम्पूर्ण पंजाब पर गोरी का अधिकार हो गया और गजनवी की सल्तनत समाप्त हो गई। इस युद्ध में उसे कश्मीर के शासक विजयदेव से सहायता मिली।
पंजाब को जीतने के बाद मुहम्मद गौरी की राज्य की सीमाएं दिल्ली और अजमेर के शासक पृथ्वी राज तृतीय की राज्य की सीमाओं से मिलने लगी। 1191 ई. में भटिण्डा के निकट तराइन का प्रथम युद्ध गौरी और पृथ्वी राज चौहान (राय पिथौरा) के बीच सम्पन्न हुआ। इसमे मुहम्मद गौरी पराजित हुआ। गोरी की भारत में यह दूसरी पराजय थी।
तराइन के प्रथम युद्ध मे पराजित होने के बाद गौरी गजनी लौट गया, लेकिन 1192 ई. में वह पुनः तराइन आ पहुंचा। 1192 ई. में तराइन का द्वितीय युद्ध प्रारम्भ हुआ। एक बड़ी सेना के साथ पृथ्वी राज चौहान ने गौरी का सामना किया किन्तु वह गौरी से पराजित हो गया।
1194 ई. में मुहम्मद गौरी ने कन्नौज के शासक जयचन्द पर आक्रमण किया तथा चन्दावर के युद्ध में उसे पराजित किया। जयचन्द की पराजय के उपरान्त उसकी हत्या कर दी गई। जयचन को पराजित करने के उपरान्त मुहम्मद गौरी अपने विजित प्रदेशो की जिम्मेदारी कुतुबुद्दीन ऐबक को सौपकर वापस गजनी चला गया।
मुहम्मद गौरी के साथ प्रसिद्ध सन्त शेख मोइनुद्दीन चिश्ती भारत आए। भारत मे चिश्ती सम्प्रदाय के संस्थापक मोईनुद्दीन चिश्ती थे। 1206 ई. में मुहम्मद गौरी की मृत्यु के पश्चात ऐबक ने भारत में नए वंश की नींव डाली, जिसे 'गुलाम वंश' कहा गया।

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