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बौद्ध धर्म' क्या है? | जैन धर्म क्या है? | प्राचिन भारत का इतिहास "आघैतिहासिक काल" एवं "ऐतिहासिक काल" ('बौद्ध धर्म' व 'जैन धर्म')
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प्राचिन भारत का इतिहास "आघैतिहासिक काल" एवं "ऐतिहासिक काल"
बौद्ध धर्म :-
"बौद्ध धर्म" || bauddh dharm || Buddhism || प्राचिन भारत का इतिहास |
बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध (बचपन का नाम सिद्धार्थ) का जन्म 563 ई. पूर्व में नेपाल कितराई में स्थित कपिलवस्तु के लुम्बिनी (आधुनिक रुम्मिनदेई) ग्राम में शाक्य क्षत्रिय कुल में हुआ। कपिलवस्तु की पहचान सिद्धार्थनगर के पिपरहवा से की जाती है। कुछ विद्वान कपिलवस्तु की पहचान नेपाल की तराई में स्थित आधुनिक तिलौराकोट से करते हैं।
- सिद्धार्थ (बुद्ध) के पिता शुध्दोधनशाक्य कुल के मुखिया थे। शाक्य अपने आपको ईक्ष्वाकु वंशीय क्षत्रिय मानते थे ।
- बुद्ध की माता महाकाया (कोलिय वंश की राजकन्या) का देहान्त बुद्ध के जन्म के सातवें दिन हो गया। अतः उनका लालन-पालन उनकी मौसी प्रजापति गौतमी ने किया।
- कालदेवल एवं कौण्डिन्य ने भविष्यवाणी की कि सिद्धार्थ चक्रवर्ती राजा या सन्यासी होगा।
- 28वे वर्ष में सिद्धार्थ को यशोधरा से राहुल नामक पुत्र प्राप्त हुआ लेकिन सांसारिक दुःखो से द्रवित होकर उन्होंने 29वे वर्ष में गृहत्याग कर दिया। इस गृहत्याग को बोद्ध मतावलम्बी 'महाभिनिष्क्रमण' कहते है।
- गौतम बुद्ध में वैराग्य उत्पन्न करने वाले चार दृश्य-
1) जर्जर शरीर वाला वृद्ध व्यक्ति 2) रोगी व्यक्ति
3) मृत व्यक्ति 4) प्रसन्न मुद्रा में सन्यासी
- गृहत्याग के पश्चात उनके प्रथम गुरु वैशाली के समीप आलारकालाम नामक सन्यासी थे, जो सांख्य दर्शन के आचार्य थे। इसी कारण बौद्ध धर्म पर सांख्य दर्शन का प्रभाव है।
- इसके बाद में वे उरुवेला (बोधगया) गये। जहाँ उन्हें कौंडिल्य व चार अन्य ब्राह्मण साधक मिले। सिद्धार्थ ने कठोर साधन छोड़कर निरंजना नदी के किनारे सुजाता के हाथों से भोजन ग्रहण किया।
- 35 वर्ष की आयु में उरुवेला में एक वटवृक्ष के नीचे समाधि की अवस्था में 49वे दिन वैशाख पूर्णिमा की रात निरंजना (पुनपुन) नदी के तट पर सिद्धार्थ को ज्ञान प्राप्त हुआ। ज्ञान प्राप्ति की इस घटना को सम्बोधिकहा जाता है।ज्ञान प्राप्ति की घटना के दो दिन बाद ही सिद्धार्थ तथागत हो गये व गौतम बुद्ध के नाम से प्रसिद्ध हुये।
- उनका प्रथम उपदेश धर्मचक्रप्रवर्तन कहलाता है। यही सारनाथ में बुद्ध ने बौद्ध संघ की स्थापना कर बौद्ध संघ में प्रवेश आरम्भ किया।
- बौद्ध ने अपने जीवन के सर्वाधिक उपदेश कोशल की राजधानी श्रावस्ती में दिए उन्होंने मगध को अपना प्रचार केंद्र बनाया।
- बुद्ध ने बनारस के यश नामक श्रेष्ठि को भी संघ का सदस्य बनाया।
- बुद्ध के प्रधान शिष्य उपालि व सर्वाधिक प्रिय शिष्य आनंद थे।
- महात्मा बुद्ध का निधन 482ई. पूर्व में 80 वर्ष की आयु में हिरण्यवती नदी के तट पर कुशीनारा (कुशीनगर) में हुआ। बुद्ध के निधन को महापरिनिर्वाण के नाम से भी जाना जाता है। विद्वान कुशीनगर को देवरिया का कसिया गांव मानते है। मृत्यु से पूर्व महात्मा बुद्ध ने कुशीनारा में परिव्राजक सुभच्छ (सुभद्द) को अपना अंतिम उपदेश दिया।
- बिम्बिसार ने राजगृह में 'वेलुवन' नामक विहार बनवाया।
- बौद्ध धर्म का सर्वाधिक प्रचार कोशल राज्य में हुआ। कोशल में ही बुद्ध के सर्वाधिक अनुयायी बने तथा कोशल की राजधानी श्रावस्ती में ही बुद्ध ने सर्वाधिक उपदेश दिये तथा श्रावस्ती में ही सर्वाधिक वर्षाकाल व्यतीत किया। कपिलवस्तु भी कोशल राज्य के आधीन था। अंगुलिमाल नामक डाकू को बुद्ध ने श्रावस्ती (कोशल) में ही बौद्ध धर्म में दीक्षित किया।
बौद्ध धर्म की शिक्षाएँ एव सिद्धांत–
बौद्ध धर्म की "शिक्षाएँ" एव "सिद्धांत" || "Teachings" and "Principles" of Buddhism || प्राचिन भारत का इतिहास |
बौद्ध धर्म में त्रिरत्न–बुद्ध, धम्म तथा संघ हैं। महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं का मूल आधार चार आर्य सत्य है, ये है–
1) दुःख। 2) दुःख समुदय। 3) दुःख निरोध। 4) दुःख निरोध गामिनी प्रतिपदा (दुःख निवारक मार्ग)
चौथे आर्य सत्य में अष्टांगिक मार्ग है। ये है–
1) सम्यक् दृष्टि। 2) सम्यक् संकल्प। 3) सम्यक् वाणी।
4) सम्यक् कर्मान्त। 5) सम्यक् आजीव।
6) सम्यक् व्यायाम। 7) सम्यक् स्मृति 8) सम्यक् समाधि।
- अष्टांगिक मार्ग को मध्य मार्ग या मज्झिम प्रतिपदा भी कहते है। बुद्ध के अष्टांगिक मार्ग का स्रोत तैत्तिरीय उपनिषद् है।
- बौद्ध धर्म में पंचशील का सिद्धांत 'छान्दोग्य उपनिषद्' से लिया गया है।
- बौद्ध धर्म अनीश्वरवादी व अनात्मवादी है। वे ईश्वर के मुद्दे पर हमेशा मौन रहे।
- बौद्ध धर्म पुनर्जन्म में विश्वास करता है। यह पुनर्जन्म आत्मा का न होकर कर्मों (अनित्य अहंकार) का होता है।
- वैशाली में बुद्ध ने पहली बार महिलाओं को संघ में शामिल होने की अनुमति दी। संघ में प्रवेश पाने वाली प्रथम महिला बुद्ध की सौतेली माँ प्रजापति गौतमी थी।
- महात्मा बुद्ध ने उपदेश पाली भाषा में दिये थे।
- ललितविस्तर महायान सम्प्रदाय का प्राचीनतम ग्रंथ है। तथा महावस्तु को हीनयान या महायान के मध्य पुल माना जाता है।
बौद्ध धर्म की चार बौद्ध संगीतियाँ–
1) प्रथम बौद्ध संगीति–
- समय–483 ई. पूर्व (बुद्ध के निर्वाण के तुरन्त बाद)
- स्थल–सप्तपर्णी गुफा (राजगृह, बिहार)
- तत्कालीन शासक–अजातशत्रु (मगध का हर्यंक वंश का शासक)
- संगीति अध्यक्ष–पूरन महाकस्यप
- प्रमुख कार्य –बुद्ध की शिक्षाओ को संकलित कर उन्हें सुत्त (धर्म सिद्धान्त) तथा विनय (आचार नियम) नामक दो पिटकों में विभाजित किया
2) द्वितीय बौद्ध संगीति–
- समय–383 ई. पूर्व (बुद्ध के निर्वाण के 100 वर्ष बाद)
- स्थल–चुल्लवग्ग (वैशाली)
- तत्कालीन शासक–कालाशोक या काकवर्ण (शिशुनाग वंश)
- संगीति अध्यक्ष–सवकमीर (सर्वकामनी)
- कार्य–पूर्वी भिक्षुओ (वज्जिपुत्र 'पटलीपुत्र और वैशाली') व पश्चिमी भिक्षुओं (कौशाम्बी व अवन्ति) के मध्य विनय सम्बन्धी नियमो को लेकर मतभेद होने के कारण भिक्षु संघ दो सम्प्रदायों (1. स्थविर 'थेरवादी', 2. महासांघिक 'सर्वास्तिवादी') में विभाजित हुआ।
3) तीसरा बौद्ध संगीति–
- समय–251 ई. पूर्व
- स्थल–पाटलिपुत्र (मगध की राजधानी)
- तत्कालीन शासक–अशोक (मौर्य वंश)
- संगीति अध्यक्ष–मोग्गलिपुत तिस्स
- कार्य– 1. तृतीय पिटक अभिधम्म (कथावस्तु) का संकलन जिसमे धर्म (धम्म) सिद्धान्त की दार्शनिक व्याख्या की गई।
- (नोट–कथावस्तु के लेखक मोग्गलिपुत तिस्म थे।
4) चतुर्थ बौद्घ सगीति–
- समय–प्रथम शताब्दी ईस्वी
- स्थल–कुण्डलवन (कश्मीर)
- संगीति अध्यक्ष–वसुमित्र
- उपाध्यक्ष–अश्वघोष
- शासक–कनिष्क (कुषाण वंश)
- कार्य– 1) बौद्ध ग्रंथों के कठिन अंशो पर संस्कृत भाषा में विचार विमर्श करने के पश्चात उन्हें 'विभाषाशास्त्र' नामक टीकाओं में संकलित किया गया। विभाषाशास्त्र के लेखक वसुमित्र है। 2) बौद्ध धर्म का दो सम्प्रदाय हीनयान व महायान में विभाजन। (नोट: थेरवादी हिनयान व महासंघीय या सर्वास्तिवादी महायानी कहलाते है)
हीनयान व महायान संप्रदाय–
हीनयान- हीनयान के अनुयायी बुद्ध को एक महापुरुष मानते हैं, भगवान नहीं।
हीनयानी निम्नमार्गी व रूढ़िवादी थे। यह व्यक्तिवादी धर्म था। इसमें व्यक्ति स्वयं के निर्वाण हेतु ही प्रयासरत रहता है अन्य के कल्याण हेतु प्रयास नही करता था।
हीनयान मूर्तिपूजा व भक्ति में विश्वास नही रखते। हीनयान का आदर्श अर्हत पद को प्राप्त करना है।
हीनयान को श्रावकयान भी कहते है।
महायान- इसकी स्थापना नागार्जुन की। वे बौद्ध धर्म के सन्त पॉल है। महायान का अर्थ है उत्कृष्ट मार्ग। महायान संप्रदाय ने बुद्ध के नियमों को समयानुसार परिवर्तित किया। महायान का उदय आंध्र प्रदेश में माना जाता है।
हीनयान व्यक्तिवादी है जबकि महायान में सेवा पर जोर दिया जाता है।
जैन धर्म :-
जैन धर्म के अनुसार जैन धर्म में 24 तीर्थंकर होते है। कुछ महत्वपूर्ण तीर्थंकर–
- प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेश का जन्म अयोध्या में माना जाता है। ऋषभदेश अयोध्या के राजा थे। सम्भव नाथ का जन्म श्रावस्ती तथा पद्मप्रभ का जन्म कोशाम्बी में माना जाता हैं।
- दूसरे जैन तीर्थंकर अजितनाथ का उल्लेख यजुर्वेद में हुआ है।
- 23वे तीर्थंकर पार्श्वनाथ व 24वे तीर्थंकर महावीर स्वामी को छोड़कर अन्य सभी तीर्थंकरो को ऐतिहासिक संदिग्ध है।
- पार्श्वनाथ के अनुयायियों को नर्ग्रन्थ कहा जाता था। पार्श्वनाथ वैदिक कर्मकाण्ड व देववाद के कटु आलोचक थे। उन्होंने प्रत्येक व्यक्ति को मोक्ष का अधिकारी बताया तथा नारियो को भी अपने संप्रदाय में प्रवेश दिया। पार्श्वनाथ का काल महावीर स्वामी से 250 वर्ष पूर्व का माना जाता है।
- पार्श्वनाथ का जन्म वाराणसी (काशी) में 850 ई. पू. के आस-पास हुआ। इसके पिता अश्वसेन काशी के शासक थे।
- पार्श्वनाथ द्वारा प्रतिपादित चार महाव्रतों (चातुर्याम) (सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह व अस्तेय) में महावीर स्वामी ने ब्रह्मचर्य नामक महाव्रत जोड़ा।
- महावीर स्वामी जैन धर्म के 24वे व अंतिम तीर्थंकर तथा जैन धर्म के वास्तविक संस्थापक माने जाते है।
- जैन धर्म के अनुसार जैन धर्म में 24 तीर्थंकर होते है। वे है–
महावीर स्वामी का एक परिचय :-
महावीर स्वामी का जन्म 599 ई. पू. कुंडग्राम (वैशाली, बसाढ़ के निकट वज्जिसंघ का गणराज्य) में हुआ था।
इनके पिता का नाम सिद्धार्थ (ज्ञातर्क कुल के प्रधान) था व उनकी माता का नाम त्रिशला (लिच्छवि शासक चेटक की बहन ) था। इनकी पत्नी का का नाम यशोदा था।
इनकी मृत्यु 527 ई. पू. पावापुरी में (राजगृह के निकट पावा वर्तमान नाम पोखरपुर) हुई थी।
इनके पिता का नाम सिद्धार्थ (ज्ञातर्क कुल के प्रधान) था व उनकी माता का नाम त्रिशला (लिच्छवि शासक चेटक की बहन ) था। इनकी पत्नी का का नाम यशोदा था।
इनकी मृत्यु 527 ई. पू. पावापुरी में (राजगृह के निकट पावा वर्तमान नाम पोखरपुर) हुई थी।
"महावीर स्वामी" || Mahavir Swami |
- जैन धर्म में सांसारिक तृष्णा व बंधन से मुक्ति को मोक्ष (निर्वाण) कहा जाता है। मोक्ष हर जीव का अंतिम लक्ष्य है।
- कर्म ही पुनर्जन्म का कारण है, कर्मफल से विमुक्ति ही ही निर्वाण प्राप्ति का साधन है।
- जैन धर्म के अनुसार कर्मफल से मुक्ति के लिए त्रिरत्न का अनुशीलन आवश्यक है। ये त्रिरत्न है–
1) सम्यक् दर्शन (श्रद्धा) 2) सम्यक् ज्ञान।
3) सम्यक् आचरण।
- सत् में विश्वास सम्यक् श्रद्धा है, सद्रूप का शंकाविहीन और वास्तविक ज्ञान सम्यक् ज्ञान है। जीव का समस्त इन्द्रिय विषयो में अनासक्त होना, उदासीन होना, सम दुःख-सुख होना ही सम्यक् आचरण है।
- जैन धर्म के छ: द्रव्य–
1) जीव 2) पुद्गल (भौतिक तत्व) 3) धर्म 4) अधर्म
5) आकाश। 6) काल।
- जैन धर्म के ज्ञान के तीन स्रोत है–
1) प्रत्येक्ष। 2) अप्रत्यक्ष। 3) शब्द (तीर्थंकर के वचन)
- मोक्ष के बाद व्यक्ति को जीवन मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाती है तथा वह 'अनन्त चतुष्टय' को प्राप्त कर लेता है 'अनन्त चतुष्टय' मतलब 1)अनन्त ज्ञान 2)अनन्त दर्शन 3)अनन्त वीर्य 4)अनन्त दुःख प्राप्त कर लेता है।
- जैन धर्म मे दो संप्रदाय 1)श्वेताम्बर (तेरापंथी) 2)दिगम्बर (समैया) होते हैं।
- 300 ई. पू. में मगध में अकाल पड़ने पर स्थलबाहु के नेतृत्व में मगध में ही निवास करने वाले व श्वेतवस्त्र धारण करने वाले जैन भिक्षु श्वेताम्बर कहलाये।
- अकाल के समय छठे जैन आचार्य (थेर) भद्रबाहु के नेतृत्व में मगध छोड़कर श्रवणबेलगोला (कर्नाटक) जाने वाले जैन दिगम्बर कहलाये। दिगम्बर अपने को शुद्ध बताते थे व नग्न रहते थे। ये दक्षिणी जैनी कहलाये। दिगम्बर मतावलम्बी भद्रबाहु की शिक्षाओं को ही प्रमाणित मानते हैं।
- श्वेताम्बर सम्प्रदाय ने ही सर्वप्रथम महावीर स्वामी व अन्य जैन तीर्थंकर की पूजा प्रथम शताब्दी ई. के आस-पास शुरू की।
- उत्तर भारत में जैन धर्म के दो प्रमुख केन्द्र उज्जैन व मथुरा थे। पूर्वी भारत मे पुण्ड्रवर्धक व दक्षिण भारत में कर्नाटक दिगम्बर सम्प्रदाय का प्रमुख केन्द्र थे।
- जैनियों के चार वरो (शिक्षा, अन्न, चिकित्सा व आवास) के सिद्धांत जैनियों में लोकप्रिय थे।
- ऋग्वेद में केवल दो तीर्थंकर (ऋषभदेव व अरिष्टनेमि) का उल्लेख है।
- जैन ग्रंथ उत्तराध्ययनसूत्र के अनुसार 22वे तीर्थंकर अरिष्टनेमि भागवत धर्म के वासुदेव कृष्ण के समकालीन थे।
- अधिकांश जैन धर्म ग्रंथ अर्धमागधी भाषा मे लिखे गये है। कुछ ग्रंथ अपभ्रंश में भी लिखे गए है। जैन मुनि हेमचन्द्र ने अपभ्रंश भाषा का पहला व्याकरण तैयार किया।
- कलीग का राजा खारवेल जैन धर्म का अनुयायी था। जैन मूर्ति पूजा का प्राचीनतम अभिलेखीय साक्ष्य हाथीगुम्फा अभिलेख है।
- जैन भिक्षु भिक्षुणी सल्लेखना द्वारा शरीर त्यागते है। सल्लेखना का अर्थ है 'उपवास द्वारा शरीर त्यागना'।
जैन संगीति :-
प्रथम जैन महासभा- चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में 300 ई. पू. में पाटलिपुत्र में जैन धर्म उपदेशों के संकलन हेतु एक महासभा का आयोजन किया गया। इसमें जैन धर्म के प्रधान भाग 14 पूर्वो (पर्वो) का स्थूलभद्र ने 12 अंगो में सम्पादन किया। श्वेताम्बरो ने 12 अंगों को स्वीकार किया।
- इस महासभा का दक्षिण के दिगम्बर जैनो (भद्रबाहु आदि) ने बहिष्कार किया।
- इसमे जैन धर्म श्वेताम्बर व दिगम्बर सम्प्रदाय में बट गया।
द्वितीय जैन महासभा- 512-513 ई. में देवर्धिगणि (क्षमाश्रमण) के नेतृत्व में गुजरात मे वल्लभी में द्वितीय जैन महासभा का आयोजन हुआ। द्वितीय जैन संगीति का मूल उद्देश्य जैन धर्म के मूल पाठो को एकत्र कर उन्हें आगमों का रूप देना था। इसमे धर्मग्रंथों को अंतिम रूप से अर्धमागधी भाषा में संकलित कर लिपिबद्ध किया गया तथा 12 उपांग जोड़े गये। प्रथम सभा में संकलित 12वा अंग इस समय खो गया था।
- हेमचन्द्र सूरी ने त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरितम् की रचना की जिसका परिशिष्ट, परिशिष्टपर्व के नाम से जाना जाता है।
जैन वास्तु कला :-
- श्रवणबेलगोला (कर्नाटक में चन्द्रगिरि पहाड़ी पर स्थित) में गंग शासन राजमल्ल चतुर्थ के मंत्री चामुण्ड राज ने 989ई. में गोमतेश्वर (बाहुबली जो प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के पुत्र थे) की 57 फुट ऊँची विशाल प्रतिमा का निर्माण करवाया। गोमतेश्वर या बाहुबली का महामस्तकाभिषेक समारोह उसी समय से 12 वर्ष पर मनाया जाता है।
- उदयगिरि (विदिशा-मध्यप्रदेश) की बाघ गुफा से कुमार गुप्त प्रथम के समय (425ई.) का एक लेख मिला है जिसके अनुसार शंकर नामक एक व्यक्ति ने जैन तीर्थंकर की मूर्ति का निर्माण करवाया।
- वास्तुपाल व तेजपाल ने भी 1230ई. में दिलवाड़ा में नेमिनाथ के मंदिर का निर्माण करवाया।
- ऐलोरा से भी कई जैन गुफाएं मिली है। इनमे इन्द्रसभा की गुफा प्रसिद्ध है।
- अर्बुदगिरी (आबू), शत्रुजंयगिरी, चन्द्रगिरी और उर्जयन्तगिरी जैनो के पावन स्थल है।
- पारसनाथ, पावापुरी, राजगृह (सभी बिहार) से भी जैन स्थापत्य के उदाहरण मिले हैं।
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