"गुलाम वंश" के संस्थापक कौन थे? | सल्तनत काल के प्रश्न | सल्तनत कालीन प्रशासनिक व्यवस्था | "दिल्ली सल्तनत" | "मध्यकालीन" भारत का इतिहास

"दिल्ली सल्तनत" का मध्यकालीन भारत का इतिहास "गुलाम अथवा दास वंश"

1206 ई. से 1526 ई. तक काल भरतीय इतिहास में सल्तनत काल के नाम से जाना जाता है।
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 "दिल्ली सल्तनत" || Delhi Sultanate || "मध्यकालीन" भारत का इतिहास

गुलाम अथवा दास वंश-

1206 ई. में कुतुबुद्दीन ऐबक ने भारत के साम्राज्य को गजनी के नियंत्रण से मुक्त कर स्वतन्त्र सत्ता की स्थापना की। उसने दास अथवा गुलाम वंश की नींव डाली। गुलाम वंश के अंतर्गत विभिन्न वंश के व्यक्तियों ने शासन किया।

कुतुबुद्दीन ऐबक-
तुर्किस्तान निवासी कुतुबुद्दीन ऐबक मुहम्मद गौरी का गुलाम था। उसमें एक वीर सैनिक के गुण विद्यमान थे। इसी कारण मुहम्मद गौरी ने उसे अपना सेनापति नियुक्त किया था।
मुहम्मद गौरी के भारत से गजनी लौट जाने के पश्चात कुतुबुद्दीन ऐबक ने भारत स्थित मेरठछ, कालिंजर, महोबा, कोइल, रणथम्भौर, कन्नौज आदि को विजित कर तुर्की साम्राज्य की सीमा का विस्तार किया। मुहम्मद गौरी की मृत्यु के पश्चात ऐबक ने अपने को स्वतंत्र घोषित कर दिया। सुल्तान के रूप में उसने 1206 ई. से 1210 ई. तक शासन किया।1210 ई. में पोलो खेलते समय घोड़े से गिरकर उसकी मृत्यु हो गई।

आरामशाह-
कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु के पश्चात लाहौर के अफसरों ने उसके पुत्र आरामशाह को गद्दी पर बैठाया। दिल्ली के नागरिक कुतुबुद्दीन ऐबक के दामाद इल्तुतमिश को सिंघासन पर बैठाने के पक्ष में थे, सिंघासन के लिए इल्तुतमिश व आरामशाह के बीच संघर्ष हुआ। जिसमें आरामशाह पराजित हुआ और सम्भवतः मारा गया।

इल्तुतमिश-
इल्तुतमिश कुतुबुद्दीन ऐबक की तरह ही एक गुलाम था। वह तुर्किस्तान के इल्बरी तुर्क कबीले का था।
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"इल्तुतमिश" का इतिहास || History of Iltutmish || iltutamish ka itihaas || "सल्तनत काल"
इल्तुतमिश के अनेक गुणों से प्रभावित होकर कुतुबुद्दीन ऐबक ने उसे अपने शासनकाल में उसे खरीद कर उच्च पदों पर आसान किया तथा अपनी पुत्री से विवाह कर अपना दामाद बना लिया। अपनी प्रतिभा के बल पर ही वह 'अमीर-ए-शिकार' के पद पर पहुंच सका। ग्वालियर को विजित करने के पश्चात उसे वहाँ का किलेदार बनाया गया। तत्पश्चात उसे बुलंदशहर का इक्ता तथा अन्त में दिल्ली राज्य का सर्वाधिक महत्वपूर्ण बदायूँ का इक्ता सौपा गया।
कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु के पश्चात 1211 ई. में आरामशाह का वध करके दिल्ली के सिंघासन पर आसीन हुआ। उसने 1236 ई. तक सफलतापूर्वक शासन किया। अपने शासन के दौरान उसने अपने महत्वपूर्ण कार्य किए। इल्तुतमिश ने क्रय किए गए गुलामो का संगठन बनाया। गुलामो की संख्या चालीस थी। यह संगठन 'तुर्कान-ए-चिह्लगानी' के नाम से प्रख्यात हुआ।
इल्तुतमिश पहला ऐसा तुर्क सुल्तान था, जिसने शुद्ध अरबी सिक्के चलाए उसके द्वारा चलाए गए चाँदी के टका का वजन 175 ग्रेन था। इल्तुतमिश ने फरवरी 1229 ई. में बगदाद के खलीफा से सुल्तान पद की वैधानिक स्वीकृति प्राप्त की। अरब से उसका पद कानूनी बन गया। दिल्ली स्थित कुतुबमीनार का निर्माण कार्य पूरा कराया, जिसका प्रारम्भ कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा कराया गया था। अजमेर में ढाई दिन का झोपड़ा और मस्जिद बनवाई। अप्रैल 1236 ई. में उनकी मृत्यु हो गई।

रुकनुद्दीन फिरोजशाह-
विरोधी सरदारो ने इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद रुकनुद्दीन फिरोजशाह को सुल्तान घोषित कर दिया। इसके सुल्तान बनते ही दिल्ली के समीकरण बदल गए। उसकी अनुपस्थिति में रजिया के समर्थन अमीरो ने रजिया को दिल्ली के सिंघासन पर आसीन कर दिया तथा बाद में रुकनुद्दीन फिरोजशाह का वध करा दिया गया।

रजिया सुल्तान-
रजिया बेगम दिल्ली सल्तनत की प्रथम महिला सुल्तान थी। 1236 से 1240 ई. के मध्य अपने शासन के दौरान रजिया का मुख्य लक्ष्य शासन से तुर्की गुलाम सरदारों के प्रभाव को समाप्त कर उन्हें सिंघासन के अधीन बनाना रहा। इसीलिए उसने जमालुद्दीन याकूत नामक एक हब्शी को घोड़ों के सर्वोच्च अधिकारी नियुक्त किया। अन्य में 13 अक्टूबर, 1240 ई. के दिन कैथल के समीप जब रजिया व अल्तुनिया एक व्रक्ष के नीचे आराम कर रहे थे, तब कुछ हिन्दू डाकुओं ने उनका वध कर दिया।

मुईजुद्दीन बहरामशाह-
मुईजुद्दीन बहरामशाह को दिल्ली के सिंघासन पर बैठाने के साथ ही तुर्की सरदारों ने एक नवीन पद 'नाइब' अर्थात 'नाइब-ए-मामलिकात' का सृजन किया और शासन के सम्पूर्ण अधिकार उस अधिकारी को सौप दिए।
मई 1242 ई. में बहरामशाह का वध करदिया गया। फिरोजशाह के पुत्र अलाउद्दीन मसूदशाह को दिल्ली का सुल्तान बनाया गया।

अलाउद्दीन मसूदशाह-
अलाउद्दीन मसूदशाह ने 1242 ई. से 1246 ई. तक शासन किया। उसके शासन के दौरान बलवन ने अपनी शक्ति में व्रद्धि की और शीघ्र 'अमीर-ए-हाजिब' का पद तथा तुर्को का नेतृत्व प्राप्त कर लिया।
बलबन ने इल्तुतमिश के पौत्र नासिरुद्दीन और उसकी माँ के साथ मिलकर एक षड्यंत्र द्वारा 1246 ई. में अलाउद्दीन मसूद को सुल्तान पद से हटा दिया और नासिरुद्दीन महमूद को दिल्ली का सुल्तान बना दिया।

नासिरुद्दीन महमूद-
नासिरुद्दीन महमूद ने 1246 ई. से 1266 ई. तक शासन किया। नसिरुद्दीन महमूद के शासनकाल में कुछ समय को छोड़कर शासन सत्ता बलबन के हाथ में ही रही। 1266 ई.में नासिरुद्दीन महमूद की अकस्मात् मृत्यु हो गई।

बलबन-
1266 ई. में नासिरुद्दीन महमूद की मृत्यु के पश्चात बलबन जिसका पहले से ही दिल्ली सल्तनत राज सत्ता पर अधिकार था। गयासुद्दीन बलबन के नाम से सिंघासन पर आसीन हुआ। 'दिवान-ए-अर्ज' का पुर्नगठन किया तथा अयोग्य सैनिकों को पेंशन देकर कार्य मुक्त कर दिया।
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उसने मंगोलो से देश की रक्षा करने हेतु सैन्य विभाग
सुल्तान को निरंकुशता में बाधक 'चेहलगान' (चालीस तुर्की गुलामो का दल) का विनाश किया। उत्तम गुप्तचर विभाग की स्थापना की। हिन्दू और मुसलमान विद्रोहियों का दमन किया। शत्रुओं के प्रिय 'लौह' एवं 'रक्त' की नीति का अनुसरण किया गया।
बलबन दिल्ली सल्तनत का ऐसा प्रथम सुल्तान था, जिसने सुल्तान के पद एवं अधिकारों के विषय मे अपने विस्तृत विचार प्रकट किए उसके राजत्व-सिद्धान्त की दो प्रमुख विशेषताए थी पहली सुल्तान का पद ईश्वर के द्वारा प्राप्त होता है, दूसरी सुल्तान पर किसी का अंकुश नहीं होना चाहिए। 1287 ई. में बलबन की मृत्यु हो गई।

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