18 वीं सदी के भारत का इतिहास | आधुनिक भारत का इतिहास | adhunik bharat ka itihas in hindi

अठारहवीं शताब्दी के स्वतंत्र व स्वायत्त राज्य

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बंगाल:-

मुर्शीद कुुली खाँ (1717-1727 ई.)-

बंगाल में स्वतंत्र राज्य की नीव मुर्शीद कुली खाँ ने डाली। वह बादशाह द्वारा सीधे तौर पर नियुक्त बंगाल का अंतिम गवर्नर था। औरंगजेब की मृत्यु के समय मुर्शीद कुली खाँ बंगाल का नायाब निजाम तथा उड़ीसा का सूबेदार था।
मुर्शीद ने नाजिम व दीवान के पद को एक कर दिया। उसने बंगाल से वंशानुगत शासन की शुरुआत की। हालांकि बंगाल के नवाब नाम मात्र की अनुशंसा मुगल बादशाह से प्राप्त करते रहे लेकिन वास्तव में वह स्वतंत्र थे।
मुर्शीद कुली खाँ 1704 ई. में बंगाल की राजधानी ढाका से मुर्शिदाबाद ले गया। मुर्शीद कुली खाँ के समय में तीन विद्रोह हुए। पहला विद्रोह सीताराम राय, उदय नारायण व गुलाम मुहम्मद ने किया। दूसरा विद्रोह शुजात खाँ किया। अंतिम विद्रोह नजात खाँ ने किया।

शुजाउद्दीन (1727-1739 ई.)-

1732 में शुजाउद्दीन ने अलीवर्दी खाँ को बिहार का नायाब सूबेदार बनाया। शुजाउद्दीन का उत्तराधिकारी उसका पुत्र सरफराज बना जिसने आलम-उद-दौला हैदर जंग की उपाधि धारण की तथा इसको बिहार के नायब सूबेदार अलीवर्दी खाँ 1740 ई. में  घेरिया (गिरिया) के युद्ध में पराजित कर मार डाला।

अलीवर्दी खाँ (1740-1756 ई.)-

अलीवर्दी खाँ के काल से बंगाल दिल्ली से पूर्ण स्वतंत्र हो गया। अलीवर्दी खाँ को दिल्ली से महावत जंग की उपाधि भी मिली थी।
अलीवर्दी खाँ ने मृत्यु से पूर्व अपने नाती सिराजुद्दौला को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। इससे दरबारी गुटबंदी बड़ी वह ईस्ट इंडिया कंपनी ने इसका फायदा उठाकर बंगाल में पैर जमा लिए।

अवध:-

स्वतंत्र अवध राज्य की स्थापना 1722 ई. में 'सआदत खाँ बुरहान मुल्क' ने की। वह ईरानी शिया था तथा उसे मुहम्मद शाह ने अवध का सूबेदार नियुक्त किया।
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18 वीं सदी के अवध का इतिहास | आधुनिक भारत का इतिहास


सफदरजंग (1739-1754 ई.)-

सआदत खाँ के बाद उसका भतीजा तथा दामाद सफदरजंग (अबुल मंसूर खान) अवध का नवाब बना। 1744 ई. में मुहम्मद शाह ने इसे अपना वजीर नियुक्त किया। 1754 ई. में सफदरजंग की मृत्यु हो गई।

शुजाउद्दौला (1754- 1775 ई.)-

शुजाउद्दौला ने शाह आलम द्वितीय को लखनऊ में शरण दी व पानीपत के तीसरे युद्ध में अहमदशाह अब्दाली का साथ दिया। 1773 ई. में शुजाउद्दौला व वारेन हेस्टिंग्स के बीच 'बनारस की संधि' हुई।

आसफ-उद-दौला (1775-1797 ई.)-

इसके समय में 1775 ई. में कम्पनी के साथ फैजाबाद में सन्धि हुई। यह राजधानी फैजाबाद से लखनऊ ले गया। 1797 ई. में आसफ उद्दौला की मृत्यु के बाद तत्कालीन गवर्नर जनरल सर जान शोर ने पहले वजीर अली को व बाद में 'सआदत अली' को नवाब बनाया।
सआदत अली (1797-1814 ई) ने लार्ड वैलेजली से 1801 ई. में सहायक संधि कर ली।
लार्ड वैलेजली ने रुहेलखण्ड व गंगा यमुना के दोआब में स्थित अवध का दक्षिणी क्षेत्र कम्पनी के लिए अवध से ले लिया।
सआदत अली के बाद नसीरुद्दीन (1814-1837 ई.), मोहम्मद अली (1837-1842 ई.)अमजद अली (1842-1847 ई.) शासक बने।
अवध का अंतिम नवाब वाजिद अली शाह (1847-1856 ई.) था जो 'रंगीलाशाह' के नाम से भी प्रसिद्ध था।

हैदराबाद:-

हैदराबाद के स्वतंत्र राज्य की स्थापना दक्कन के मुगल सूबेदार चिनकिलिच खाँ ने 1724 ई. में की। चिनकिलीच खाँ को फ्रुरखसियर ने निजाम -उल-मुल्क की उपाधि दी।
1748 ई. में निजामुल मुल्क की मृत्यु हो गई। हैदराबाद प्रथम भारतीय राज्य की स्थापना दक्कन के मुगल सूबेदार चिनकिलीच खाँ ने 1724 ई. में की। चिनकिलीच खाँ को फ्रुरखसियर ने निजाम-उल-मुल्क की उपाधि दी।
1748 ई. में निजामुल मुल्क की मृत्यु हो गई। हैदराबाद प्रथम भारतीय राज्य था जिसने 1798 ई. में सहायक सन्धि स्वीकार की।
1 नवम्बर, 1948 को हैदराबाद भारतीय संघ में शामिल हो गया।

कर्नाटक:-

स्वतंत्र कर्नाटक राज्य की स्थापना सादतुल्ला खाँ ने की व अर्काट को राजधानी बनाया।

भरतपुर:-

भरतपुर के स्वतंत्र जाट राज्य की स्थापना चूड़ामन के भतीजे बदन सिंह ने की। अहमद शाह अब्दाली ने बदन सिंह को 1752 ई. में राजा की उपाधि दी।
बदन सिंह के दत्तक पुत्र सूरजमल (1746-1763 ई.) को 'जाट जाति का प्लेटो (अफलातून)' कहा जाता है।
1804 ई. में द्वितीय मराठा युद्ध के समय जब भरतपुर के राजा रणजीत सिंह ने मराठा सरदार जशवंत राव होल्कर को सहायता दी तो अंग्रेज जनरल लेक ने डीग को घेर लिया व उस पर कब्जा कर लिया।

मैसूर:-

वाडियार वंश के अन्तिम शासक 'चिक्का कृष्ण राजा द्वितीय' के शासनकाल में राज्य की वास्तविक सत्ता देवराज और नंजराज के हाथों में थी।
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1749 ई. में हैदर अली ने नंजराज के सैनिक अधिकारी के रूप में सैनिक जीवन की शुरुआत की। मैसूर पर निरंतर मराठा आक्रमणों के कारण राजधानी श्री रंगपटनम पर मराठा आक्रमणों का भय था अतः हैदर अली ने 1761 ई. में मैसूर के राजसिंहासन पर मराठा ब्राह्मण खण्डेराव की मदद से अधिकार कर लिया।
यह युद्ध अंग्रेजों की विस्तारवादी नीति का कारण हुआ। अंग्रेजों की अंत में पराजय हुई व हैदर अली मद्रास तक पहुंच गया व 1769 ई. में 'मद्रास की सन्धि' की जिसके अनुसार दोनों पक्षों ने एक-दूसरे के जीते हुए क्षेत्रों को सौंप दिया।

द्वितीय आंग्ल-मैसूर युद्ध (1780-1784 ई.)-

1773 ई. में अंग्रेजों ने मैसूर की सीमा में स्थित फ्रांसीसी कोठी माहे पर नियंत्रण कर लिया। हैदर अली ने फिर एक बार निजाम व मराठों से अंग्रेजों के विरुद्ध संधि की व 1780 ई. में कर्नाटक पर आक्रमण कर द्वितीय आंग्ल-मैसूर युद्ध की शुरुआत की लेकिन अंग्रेजों ने कूटनीति से निजाम वह मराठों को अपने पक्ष में कर लिया।
1781 ई. में जनरल आयरकूट ने पोर्टोनोवा एवं सोलिदपुर के युद्ध में हैदर अली को पराजित किया। इसी युद्ध के दौरान युद्ध में घायल हो जाने के कारण 7 दिसंबर, 1732 ई. को हैदर अली की मृत्यु हो गई।
हैदर अली की मृत्यु के बाद उसके पुत्र टीपू सुल्तान ने एक वर्ष तक युद्ध जारी रखा। दोनों पक्षों ने 1784 ई. में मंगलौर की संधि हो गई जिसके तहत दोनों पक्षों ने एक-दूसरे के टूटे हुए प्रदेश लौटा दिए।

टीपू सुल्तान (1782-1799)-

टीपू सुल्तान ने सुल्तान की उपाधि धारण की व 1787 ई. में अपने नाम  के सिक्के चलवाय। वह अनेक भाषाओं का ज्ञाता था।
टीपू सुल्तान प्रथम भारतीय नागरिक था, जिसने पाश्चात्य प्रशासनिक व्यवस्था को अंशतः अपनाया। टीपू ने 1796 ई. को एक नौसेना बोर्ड का गठन किया तथा मंगलौर, मोलीदाबाद व दाजियाबाद में डोक यार्ड का निर्माण किया।

तृतीय आंग्ल-मैसूर युद्ध (1790-1792 ई.)-

टीपू मिडोज के नेतृत्व वाली सेना से पराजित हुआ व मार्च, 1792 ई. में अंग्रेजों वे टीपू के बीच श्रीरंगपट्टनम की संधि हुई जिसके तहत टीपू ने अपना आधा राज्य अंग्रेज व उनके सहयोगियों को दे दिया।

चतुर्थ आंग्ल-मैसूर युद्ध (1799 ई.)-

चतुर्थ आंग्ल-मैसूर युद्ध में बैलेजली, हैरिस व स्टुअर्ट के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना ने टीपू को पराजित किया।
टीपू 4 मई, 1799 ई. को लड़ता हुआ मारा गया।
चतुर्थ मैसूर युद्ध के बाद मैसूर के विलय के बाद गवर्नर जनरल वेलेजली ने घोषणा की कि 'पूर्व का साम्राज्य हमारे पैरों में है।'

पंजाब:-

गुरु गोविंद सिंह की मृत्यु के बाद सिक्खों का नेतृत्व बन्दा बहादुर (लक्ष्मण देव) के हाथ में आ गया।
पंजाब में अफगान आक्रमण के मुगल सूबेदारों के अत्याचार से हुई अव्यवस्था को समाप्त करने के लिए दल खालसा ने 1753 ई. में 'राखी प्रथा' की शुरुआत की।
इसके तहत प्रत्येक गांव से उपज का पांचवा भाग लेकर दल खालसा उसकी सुरक्षा का प्रबंध करता था।
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राखी प्रथा से सिक्खों का राजनैतिक शक्ति के रूप में उदय हुआ। आधुनिक पंजाब के निर्माण का श्रेय सुकरचकिया मिसल को दिया जाता है। रणजीत सिंह सुकरचकिया मिसल के प्रमुख महासिंह के पुत्र थे।

महाराजा रणजीत सिंह (1792-1839 ई.)-

रणजीत सिंह का जन्म 2 नवंबर, 1780 को हुआ। 1792 में अपने पिता महासिंह की मृत्यु के बाद रणजीत सिंह शासक बने। रणजीत सिंह ने अपने आप को खालसा अथवा सिक्ख राष्ट्रमण्डल का सेवक मानकर खालसा के नाम पर शासन किया।
रणजीत सिंह ने 1805 में भंगी मिसल से लाहौर व अमृतकर छीन कर लाहौर को अपनी राजधानी बनाई।
रणजीत सिंह ने 25 अप्रैल, 1809 ई. को लार्ड मिन्टो के दूत चार्ल्स मेटकाफ से अमृतकर की संधि की।
इस संधि द्वारा रणजीत सिंह ने सतलज के पूर्व में अपने दावे को छोड़ दिया वह उसके साम्राज्य की दक्षिणी पूर्वी सीमा समतल नदी पर स्वीकार की।
शाहशुजा ने रणजीत सिंह को कोहिनूर हीरा भेंट किया जिसे 1739 ई. में नादिरशाह दिल्ली से लूट कर ले गया था।
रणजीत सिंह भारत के प्रथम शासक थे जिन्होंने सहायक संधि को अस्वीकार किया व कभी अंग्रेजों के सामने समर्पण नहीं किया। रणजीत सिंह की 1839 ई. में मृत्यु हो गई। उसके बाद क्रमशः खड़ग सिंह, नौनिहाल सिंह और शेरसिंह शासक बने।
रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद उसका पुत्र खड़गसिंह गद्दी पर बैठा। लेकिन दरबार दो विरोधी गुटों में बट गया।
इसके बाद सत्ता संघर्ष में संधावालिया दल ने नौनिहाल सिंह की माता रानी चाँद कौर का पक्ष लिया और डोगरा बंधुओं ने रणजीत सिंह के अन्य पुत्र शेरसिंह का समर्थन किया।
1841 ई. में शेरसिंह ने सत्ता हथिया ली लेकिन 1843 ई. में अजीत सिंह ने गोली मारकर शेरसिंह की हत्या कर दी व ध्यानसिंह की भी हत्या कर दी।
1843 ई. में रानी झिन्डन (जिन्दा) के संरक्षण में रणजीत सिंह का अल्पायु पुत्र दिलीप सिंह शासक बना। दिलीप सिंह के समय अंग्रेजों ने पंजाब पर आक्रमण किया अतः 'प्रथम आंग्ल-सिक्ख युद्ध' शुरू हुआ।

प्रथम आंग्ल-सिक्ख युद्ध (1845-1846 ई.)-

यह युद्ध लार्ड हार्डिंग के समय हुआ। सर हुगफ अंग्रेजी सेना के प्रधान सेनापति थे।
हुगफ के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना ने लाल सिंह के नेतृत्व में सिक्ख को 13 दिसंबर, 1845 ई. मुदकी नामक स्थान पर पराजित किया।
8 मार्च, 1846 ई. को दोनों पक्षों में 'लाहौर की संधि' हुई।
अंग्रेजों ने संधि के बदले दिलीप सिंह को रानी झिन्डन के संरक्षण में महाराजा स्वीकार किया।

द्वितीय आंग्ल-सिक्ख युद्ध (1848-1849 ई.)-

इसका तत्कालीन कारण मुल्तान के सूबेदार मूलराज का विद्रोह था। शेरशाह मूलराज के साथ मिल गया। द्वितीय आंग्ल-सिक्ख युद्ध के समय भारत का गवर्नर जनरल लार्ड डलहौजी था।
नेपियर ने 21 फरवरी, 1949 ई. को 'गुजरात के युद्ध' में सिक्खो की सेना को निर्णायक रूप से पराजित किया।
महाराज दिलीप सिंह को पाँच लाख रुपये की वार्षिक पेंशन देकर रानी झिन्डन के साथ इंग्लैंड भेज दिया गया।
सर जॉन लॉरेंस पंजाब का प्रथम चीफ कमिश्नर बना।

स्वतंत्र राज्यों का उदय:-

3 मार्च, 1707 ई. को अहमदनगर में औरंगजेब की मृत्यु हो गई व मुगल साम्राज्य का पतन तीव्र गति से शुरु हो गया। 1707 ई. के बाद का समय उत्तरोत्तर मुगल काल के नाम से जाना जाता है।


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