मराठा साम्राज्य | मराठा साम्राज्य का इतिहास | Maratha Empire | maratha samrajya in hindi

"मराठा साम्राज्य" व उनका मुगलों के साथ संघर्ष

मराठों का प्रारंभिक उत्कर्ष देवगिरी के यादवों के अधीन हुआ, इस राज्य के पतन के बाद बहमनी राज्य की सेवा में चले गए।

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शाहजी भोंसले (1594-1602 ई.):-

शाहजी भोंसल ने अपना जीवन अहमदनगर के सुल्तान के एक सैनिक के रूप में शुरू किया और कालांतर में अपनी योग्यता के बल पर पूना में जागीर प्राप्त कर ली।

शिवाजी (1627-1680 ई.):-

शिवाजी का जन्म शिवनेर के किले में अप्रैल, 1627 में हुआ था। इनकी माता का नाम जीजाबाई (देवगिरी के जागीरदार यादवराय की पुत्री) तथा पिता का नाम शाहजी भोंसले था।
शिवाजी पर धरकरी संप्रदाय से संबंधित अपने गुरु समर्थ रामदास का अत्यधिक प्रभाव पड़ा। 1643 ई. में शिवाजी ने सिंहगढ़ दुर्ग पर अधिकार कर लिया। सिंहगढ़ उस समय बीजापुर के अधिकार में था। इसके अतिरिक्त शिवाजी ने चाकन, पुरंदर, सुपा, जावली आदि दुर्गों पर अधिकार कर लिया।
इन्होंने पुरंदर का किला नीलोजी नीलकंठ से जीता तथा 1656 ई. में चंद्रराव मोरे से जावली का किला जीता। अप्रैल, 1656 में रायगढ़ को अपनी राजधानी बनाया। 1657 ई. में अहमदनगर तथा जुन्नार पर आक्रमण के समय उन्होंने पहली बार मुगलों (औरंगजेब) का सामना किया।
शिवाजी की सफलताओं से उद्वेलित बीजापुर ने अपने सरदार अफजल खाँ को सितंबर, 1659 में उनके विरुद्ध कार्यवाही करने भेजा। अफजल खाँ के दूत कृष्णा जी भास्कर द्वारा शिवाजी को अफजल खान के षड्यंत्र का पता चला। फलतः इन्होंने अफजल खाँ को उसी की भाषा में जवाब देने का निर्णय किया और अफजल खान का वध कर दिया।
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मराठा साम्राज्य का इतिहास | "मराठा साम्राज्य" व उनका मुगलों के साथ संघर्ष


दक्षिण में मराठों के बढ़ते प्रभाव को नियंत्रित करने के लिए औरंगजेब ने 1660 ई. में अपने मामा शाइस्ता खाँ को शिवाजी के दमन के लिए दक्षिण का सूबेदार नियुक्त किया। 15 अप्रेल, 1663 को रात्रि के समय शिवाजी ने दुस्साहस पूर्ण कारनामा अंजाम देते हुए शाइस्ता खाँ के पूना शिविर में घुसकर हमला कर दिया। शाइस्ता खाँ का अंगूठा कट गया, परंतु वह भाग निकला।
16 जनवरी, 1664 को शिवाजी ने मुगलों के समृद्ध बंदरगाह सूरत की लूट की। क्रुद्ध औरंगजेब ने शाइस्ता खाँ को वापस बुला लिया और अपने राजपूत सेनापति जयसिंह को शिवाजी के दमन हेतु दक्कन भेजा।

पुरन्दर की सन्धि (1665 ई.)- 

इसके अनुसार शिवाजी को अपने 33 में से 23 के लिए मुगलों को देने पड़े। 16 जून, 1674 को रायगढ़ किले में काशी के प्रसिद्ध विद्वान गंगाभट्ट द्वारा शिवाजी का राज्याभिषेक हुआ। इस अवसर पर हेनरी आक्साइडन उपस्थित था। शिवाजी ने छत्रपति की उपाधि ली तथा हिंदू धर्म की रक्षा का प्रण लिया। हैंदव धर्मोध्दारक व गौब्राह्मण प्रतिपालक की उपाधि धारण की।
1678 ई. में शिवाजी ने जिंजी का किला जीत लिया। इसे दक्षिणी भागों की राजधानी बनाया। यह उनकी अंतिम विजय थी

शिवाजी के उत्तराधिकारी:-

शम्भाजी (1680-1689 ई.)-

मराठा सरदारों पर अपनी शक्ति प्रदर्शन द्वारा शम्भाजी छत्रपति बनने में सफल हुआ। उसने अपने मित्र कवी कलश को अपना सलाहकार बनाया। औरंगजेब ने उसके विरुद्ध अभियान किया। 21 मार्च, 1689 को भीमा नदी के किनारे उसकी हत्या कर दी गई।

राजाराम (1689-1700 ई.)-

शम्भाजी की अप्रत्याशित मृत्यु के बाद मराठा सरदारों ने शिवाजी के द्वितीय पुत्र राजाराम को सिंहासन पर बैठाया।

ताराबाई व शिवजी द्वितीय (1700-1708 ई.):-

राजाराम की मृत्यु के बाद उसकी विधवा ताराबाई ने अपने चार वर्षीय पुत्र को शिवाजी द्वितीय नाम से मराठा राज सिंहासन पर बैठाया। 1707 ई. में औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात शाहू ने ताराबाई को चुनौती दी और खेड़ा की लड़ाई में ताराबाई को पराजित कर मराठा छत्रपति बन गया।

शाहू (1707-1749 ई.):-

शाहू का राज्याभिषेक फरवरी, 1708 में सातारा में किया गया तथा वही उसकी राजधानी बनाई गई। 1708 ई. में  शाहू ने बालाजी विश्वनाथ को सेनाकर्ते (सैन्य व्यवस्थापक) पद पर आसीन किया एवं 1713 ई. में उसे पेशवा बना दिया। पेशवा बालाजी बाजीराव तथा राजाराम द्वितीय का मध्य संगोला की सन्धि से (1750 ई.) पेशवा मराठा संघ का वास्तविक प्रधान बन गया।

बालाजी विश्वनाथ (1713-1720 ई.):-

बालाजी विश्वनाथ एक ब्राह्मण था। उसने अपना जीवन एक छोटे राजस्व अधिकारी के रूप में प्रारंभ किया। उसकी सेवाओं से प्रसन्न होकर 1713 ई. में शाहू ने उसे पेशवा नियुक्ति दिया।

बाजीराव प्रथम (1720-1740 ई.):-

शाहू ने बालाजी की मृत्यु के पश्चात उसके पुत्र बाजीराव प्रथम को पेशवा नियुक्त किया। उसके एडमिन मराठा शक्ति अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंच गई। बाजीराव ने 7 मार्च, 1728 को पालखेड़ा के समीप निजाम को पराजित किया तथा उसने मुंगी शिवगाँव की सन्धि की।
1739 ई. में बसीन की विजय बाजीराव की महान सैन्य कुशलता एवं सूझबूझ का प्रतीक थी। इस युद्ध में बाजीराव ने पुर्तगालियों से सालसेट तथा बसीन छीन ली।

बालाजी बाजीराव (1740-1761 ई.):-

पेशवा बाजीराव की मृत्यु के बाद उसका पुत्र बालाजी बाजीराव ( नाना साहेब के नाम से प्रसिद्ध) गद्दी पर बैठा। सारे अधिकार अब पेशवा में समाहित कर दिए गए अतः अब मराठा शक्ति का केंद्र पूना हो गया।
पानीपत का तृतीय युद्ध (1761 ई.)- मराठों और अफगानिस्तान के शासक अहमदशाह अब्दाली के मध्य हुए इस युद्ध में अहमदशाह अब्दाली विजय हुआ और मराठे पराजित हुए।

माधवराव (1761-1772 ई.):-

पानीपत की लड़ाई में मराठों की हार तथा बालाजी की अकस्मात मृत्यु के बाद उसका पुत्र माधवराव प्रथम पेशवा बना। उसने हैदराबाद के निजाम और हैदर अली को चोथ देने के लिए बाध्य किया।

नारायण राव (1772-1773 ई.):-

माधवराव की मृत्यु के बाद उसका छोटा भाई नारायण राव पेशवा बना किंतु चाचा रघुनाथ ने स्वयं पेशवा बनने के लिए 1773 ई. में उसकी हत्या कर दी।

माधव नारायण राव (1774-1796 ई.):-

पेशवा नारायण राव की हत्या कर रघुनाथ राव अंग्रेजों की शरण में भाग गया जबकि नया पेशवा माधव नारायण राव अल्पायु था, अतः मराठा राज्य के संचालन के लिए 12 सदस्यों की परिषद का निर्माण हुआ जिसमें नाना फडनवीस, सखाराम बापू, महादजी सिन्धिया जैसे प्रमुख सरदार शामिल थे।
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आंग्ल-मराठा युद्ध |  मराठा साम्राज्य का इतिहास | maratha samrajya


इसी के काल में प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध (1775-1782 ई.) हुआ, जिसमें मराठों ने अंग्रेजों को बराबरी की टक्कर दी और अंततः शांति व्यवस्था हेतु 1782 ई. को सालबाई की सन्धि की गई।

पेशवा बाजीराव द्वितीय (1796-1818 ई.):-

माधव नारायण की मृत्यु के पश्चात राघोबा का पुत्र बाजीराव द्वितीय पेशवा बना। इसने जसवन्त होलकर के भाई की हत्या करवा दी जिसके परिणाम स्वरूप होलकर ने इस पर आक्रमण कर दिया। अतः अपनी सुरक्षा हेतु इसने अंग्रेजों से 31 दिसंबर, 1802 को बसीन की सन्धि कर ली।
द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध (1803-1806 ई.)-
इस युद्ध में अलग-अलग मराठा सरदार एक-एक कर अंग्रेजों से हार गए। इस प्रकार अब अंग्रेजों ने मराठों पर अपनी श्रेष्ठता सिद्ध कर दी।
तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध (1817-1818 ई.)-
इस युद्ध में मराठा शक्ति अंग्रेजों से पूर्णतः पराजित हुई। 1818 ई. में पेशवा बाजीराव का अंग्रेजों के साझा समर्पण के साथ ही पेशवा पद समाप्त कर दिया गया।

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