"मुगल साम्राज्य" में "हुमायूँ" का शासन काल (1530-40 व 1555-56) | Humayun kon tha in hindi

"मुगल साम्राज्य" में "हुमायूँ" का शासनकाल | Humayun kon tha in hindi | "हुमायूं" कौन था | हुमायूं का मकबरा कहां स्थित है| हुमायूं की माता का नाम |  हुमायूँ के युद्ध

हुमायूँ (1530-40 व 1555-56):-

 हुमायूँ, का जन्म 6 मार्च, 1508 ई.  को काबुल में हुआ था। उसके पिता का नाम 'बाबर' तथा माता का नाम 'महाम सुल्ताना' था। हुमायूँ बाबर की मृत्यु के बाद दिल्ली सिंहासन पर आसीन हुआ। हुमायूँ के बेटे का नाम अकबर था।हुमायूँ का मकबरा इमारत परिसर मुगल वास्तुकला से प्रेरित मकबरा स्मारक है। यह नई दिल्ली के दीनापनाह अर्थात् पुराने किले के निकट निज़ामुद्दीन पूर्व क्षेत्र में मथुरा मार्ग के निकट स्थित है।

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"मुगल साम्राज्य" में "हुमायूँ" का शासन काल | Humayun kon tha | हुमायूँ के युद्ध

हुमायूँ के दस वर्ष के शासन के पश्चात ही उसे लगभग 15 वर्ष तक निष्कासित जीवन व्यतीत करना पड़ा। 1555 ई. में उसने पुनः भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना की।

अभी वह अपने पुनः स्थापित मुगल साम्राज्य की सुरक्षा का प्रबंधन भी ना कर सका कि एक दिन जब  हुमायूँ  'दीनपनाह' के पुस्तकालय की सीढ़ियों से उतर रहा था कि उसका पैर फिसल गया और वह लुढ़क कर नीचे जा गिरा।

सिर में गंभीर चोट लगने के कारण 27 जनवरी, 1556 ई.  को हुमायूँ मृत्यु हो गई। हुमायूँ शासनकाल की प्रमुख घटनाएं इस प्रकार थी-

कलिंजर विजय (1531):- कलिंजर का शासक प्रताप रुद्रदेव था। उसकी अफगानो के प्रति सहानुभूति थी। अफगान हुमायूँ के प्रबल शत्रु थे। इस भय से कहीं प्रताप रूद्र देव और अफगान मिलकर उसके लिए समस्या ना उत्पन्न कर दें। हुमायूँ ने 1531 मैं कालिंजर पर आक्रमण किया और विजय प्राप्त की।

दोहरिया का युद्ध (1532):-  दोहरिया नामक स्थान पर हुमायूं व अफगानो की सेना में युद्ध हुआ। अफगान इस युद्ध में पराजित हुए। शेरशाह महमूद लोदी से अलग हो गया। 

बहादुरशाह से संघर्ष (1535-36):- गुजरात के शासक बहादुर शाह ने अपने साम्राज्य की सीमाओं को बढ़ाया तो हुमायूँ के समक्ष खतरा उत्पन्न हो गया। अतः बहादुर शाह की शक्ति का दमन करने के लिए वह चल दिया। जिसमें हुमायूँ को सफलता मिली। 

चौसा का युद्ध (1539):- जब हुमायूँ बहादुर शाह से संघर्ष कर रहा था, तब तक शेरशाह ने अपनी शक्ति में बहुत अधिक विस्तार कर लिया था। जब हुमायूँ शेरशाह का दमन करने बंगाल पहुंचा, तब तक शेरशाह ने बंगाल को लूट लिया था। बंगाल से लौटती हुई मुगल सेना पर शेरशाह ने आक्रमण कर दिया। गंगा नदी के तट पर शेरशाहऔर हुमायूँ के मध्य युद्ध हुआ। इस युद्ध में मुगल सेना पराजित हुई। 

कन्नौज अथवा बिलग्राम का युद्ध (1540):- यह युद्ध कन्नौज के निकट हुमायूँ तथा शेरशाह की सेना के मध्य हुआ। 15 मई, 1540 को घनघोर वर्षा होने के कारण मुगल खेमे में पानी भर गया। 17 मई को मुगल सेना हुमायूँ के आदेश पर ऊंची भूमि की ओर बढ़ रही थी।  तभी अफ़गानों ने आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में मुगल सेना अपने तोपखाने का प्रयोग नहीं कर पाई और परास्त हुई। शेरशाह ने दिल्ली तथा आगरा पर अधिकार कर लिया।

कन्नौज युद्ध के पश्चात हुमायूँ भारत में इधर-उधर भागता रहा।  किंतु शेरशाह ने उसका पीछा किया। उसे भारत छोड़ने को बाध्य होना पड़ा। भारत छोड़कर वह ईरान चला गया।1540 से 1555 तक लगभग 15 वर्ष उसने निष्कासित जीवन व्यतीत किया।

शेरशाह की मृत्यु हो जाने के पश्चात अफ़गानों में फूट पड़ गई। जब यह बात हुमायूँ को पता लगी तो उसने पुनः भारत विजय की योजना बनाई और शीघ्र ही उसे क्रियान्वित किया। 1555 के आरंभ में ही उसने लाहौर प्रदेश पर अधिकार कर लिया। 15 मई,1555  मे मच्छीवारा के युद्ध में विजय प्राप्त कर पंजाब पर अधिकार कर लिया। 22 जून, 1555 के सरहिंद के युद्ध में हुमायूँ ने सिकंदर सुर को पराजित कर अफ़गानों की सत्ता को भारत से सदैव के लिए उखाड़ फेंका।

आगे बढ़कर हुमायूँ ने जुलाई 1555 में दिल्ली पर पुनः अधिकार कर लिया। लेकिन दुर्भाग्यवश वह अधिक दिन तक शासन ना कर सका। जनवरी, 1556 में उसकी 'दिन पनाह' के पुस्तकालय से गिर जाने के कारण मृत्यु हो गई। 

  कुछ महत्वपूर्ण बिंदु:-

शेरशाह(1540-1555):- 

शेरशाह के बचपन का नाम फरीद था। उसका जन्म 1486 ई. में नरमोल परगने में हुआ था।  सूर्यवंशीय शेरशाह अपने वंश में सर्वोत्तम शासक माना जाता है। यद्यपि उसने केवल 5 वर्ष ही शासन किया, किंतु अपने अल्पशासन के दौरान उसने भारत को ऐसी शासन व्यवस्था प्रदान की, जिसका की आगे आने वाले अनेक सम्राटों ने अनुसरण किया।

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हुमायूँ को पराजित कर शेरशाह का शासन काल | sher shah suri kon tha |  शेरशाह के युद्ध


हुमायूँ को पराजित कर शेरशाह की शासन व्यवस्था:-

सुल्तान शासन का सर्वोसर्वा होता था। शासन की समस्त शक्तियां उसी में निहित थी।

मंत्री:- शेरशाह ने यद्यपि मंत्रियों को विस्तृत अधिकार प्रदान नहीं किए थे, किंतु फिर भी शासन सुविधा की दृष्टि से शेरशाह ने सल्तनत शासन व्यवस्था के आधार पर चार मंत्री विभाग निर्मित किया। 

दीवान-ए-वजारत:- यह अर्थव्यवस्था और लगान का प्रधान था।

दिवान-ए-आरिज:- सेना का संगठन, भर्ती, रसद, शिक्षा और नियंत्रण की देखभाल करने वाले मंत्री को दीवान-ए-आरिज अथवा आरिज-ए-मुमालिक कहां जाता था।

दिवान-ए-रसालत:- विदेश संबंधित सभी मामलों का उत्तरदायित्व इसी मंत्री का होता था।

दिवान-ए-इंशा:- यह सुल्तान के आदेशों की घोषणा, उनको लिखना तथा लेखा रखता था। 

पुलिस एवं गुप्तचर विभाग:- शांति व्यवस्था का उत्तरदायित्व शिको में प्रधान शिकदार, परगनो में शिकदार तथा गाँवों में मुकदम का था। षड्यंत्रो से बचने तथा राज्य की प्रत्येक जानकारी के लिए उसने अत्यंत सुसंगठित एवं सुव्यवस्थित गुप्तचर विभाग की स्थापना की थी। 

मुद्रा में सुधार:- शेरशाह ने सोने, चांदी तथा तांबे की अत्यंत सुंदर मुद्राएं चलाएं, जिनका अनुकरण मुगल सम्राट और द्वारा किया गया। मुद्रा को आवश्यकतानुसार ढ़ालने के लिए 23 टकसालो की स्थापना की। उसके द्वारा प्रचलित की गई तांबे की मुद्रा कालांतर में 'दाम' के नाम से प्रसिद्ध हुई। 

शेरशाह ने व्यापार, यातायात एवं डाक सुविधा की दृष्टि से अनेक सड़कों एवं सरायों का निर्माण कराया। सड़कों की सुरक्षा की व्यवस्था की। दोनों और छायादार वृक्ष लगवाएं। उसके द्वारा करवाई गई निर्मित सड़कों में सबसे प्रमुख बंगाल से सिन्ध तक जाने वाली ग्रान्ट ट्रंक रोड थी।


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