- Get link
- X
- Other Apps
"बहमनी साम्राज्य" | Bahmani Sultanate | in hindi | बहमनी साम्राज्य की स्थापना | बहमनी साम्राज्य का पतन
- Get link
- X
- Other Apps
"बहमनी साम्राज्य" | बहमनी साम्राज्य की स्थापना | बहमनी साम्राज्य का संस्थापक कौन था | बहमनी साम्राज्य का इतिहास | बहमनी साम्राज्य की अर्थव्यवस्था
मुहम्मद बिन तुगलक के शासन के अन्तिम दिनों में दक्षिण में अमीर-ए-सादा के विद्रोह के कारण बहमनी साम्राज्य की स्थापना हुई।
दक्कन का प्रथम स्वतंत्र शासक 'इस्माइल मख 'नसिरुद्दीन शाह' था, लेकिन अधिक उम्र होने के कारण उसने पद त्याग दिया। अमीरों ने उसके अनुयायी जफर खाँ (हसन गंगू) को शासक चुना।
जफर खाँ (1347-1358 ई.) 1347 ई.में अब्दुल मुज्जफर, अलाउद्दीन बहमन शाह के नाम से शासक बना व बहमनी साम्राज्य की नींव डाली। वह अफगानी था।
उसने गुलबर्गा को राजधानी बनाया व उसका नाम अहसानाबाद रखा।
उसने अपने साम्राज्य को चार प्रान्तों (तरफ) में विभाजित किया-गुलबर्गा, दौलताबाद, बरार और बीदर।
प्रत्येक तरफ एक तरफदार के अधीन था। गुलबर्गा का तरफ सबसे महत्वपूर्ण था। बीजापुर इसमे सम्मिलित था।
उसने दक्षिण के हिन्दू शासकों को अपने अधीन किया व हिन्दुओ से जजिया न लेने का आदेश दिया।
मुहम्मद शाह प्रथम (1358-75 ई.)-
उसने प्रशासन को पुर्नगठित किया तथा केन्द्रीय प्रशासन को 8 विभागों में विभक्त कर अलग-अलग मंत्री नियुक्त किये। उसने विजयनगर व तेलंगाना (वारंगल) के कंपा नायक से युद्ध कर विजय प्राप्त की।
उसने वारंगल के शासक को पराजित कर उससे गोलकुण्डा छीन लिया।
मुहम्मद शाह द्वितीय (1378-1397 ई.)-
यह शान्तिप्रिय व विद्वानों का संरक्षण था। उसने प्रसिद्ध फारसी कवि हाफिज को गुलबर्गा आने का निमंत्रण दिया। उनके काल मे विजयनगर में शान्ति रही व कोई युद्ध नहीं हुआ।
दर्शन व कविता के प्रति अभिरुचि के कारण मुहम्मद शाह द्वितीय को 'दूसरे अरस्तू' की उपाधि से विभूषित किया गया।
ताजुद्दीन फिरोज शाह (1397-1422)-
फिरोज विद्वान शासक था। उसने चौल व डाभोल के बन्दरगाहों को विकसित किया। फिरोज ने प्रशासन में बड़े स्तर पर हिन्दुओ को शामिल किया। इसके समय से दक्कनी ब्राह्मण प्रशासन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने लगे।
फिरोज विजय नगर से तीसरे युद्ध में पांगुल नमक स्थान पर देवराज प्रथम से पराजित हुआ। इस पराजय के बाद फिरोज के भाई अहमद शाह प्रथम ने उसे सिंघासन से हटा दिया व स्वयं शासक बना।
फिरोज ने भीमा नदी के किनारे फिरोजाबाद नगर की स्थापना की। फिरोज के गुलबर्गा के सन्त गेसूदराज से कटु सम्बन्ध थे। फिरोज गुलबर्गा का अंतिम सुल्तान था।
शिहाबुद्दिन अहमद प्रथम (1422-1446 ई.)-
अहमद ने 1425 ई. में राजधानी गुलबर्गा से बीदर स्थानांतरित कर दी तथा इसका नाम मुहम्मदाबाद रखा।
अहमद ने वारंगल के शासक की हत्या कर वारंगल का स्वतंत्र अस्तित्व समाप्त कर दिया गया।
कुछ महत्वपूर्ण विषय :-
अलाउद्दीन अहमद द्वितीय (1446-1458 ई.)-
इसके काल में ईरान (अफ़की) निवासी महसूद गवा को राज्य की सेवा में लिया गया। महमूद गवा पहले व्यापारियों का प्रमुख (मलिक तुज्जार) था। महमूद गवा अफ़की शिया थे।
हुमायूँ (1458-1461 ई.)-
यह अलाउद्दीन का पुत्र था तथा इतना क्रूर था कि उसे जालिम की उपाधि दी गई। इसे दक्कन का नीरो भी कहा जाता था। हुमायूँ का आठ वर्षीय पुत्र निजाम शाह (1461-63 ई.) शासन बना किंतु दो वर्ष में ही उसकी मृत्यु हो गई।
मुहम्मद तृतीय (1463-1482 ई.)-
राज्यारोहण के समय इसकी आयु मात्र नो साल थी, अतः महमूद गवा इसका प्रधानमंत्री रहा। गवा को ख्वाजा जहाँ की उपाधि दी गई।
मुहम्मद गवा-
महमूद गवा ने अपने कुशल नेतृत्व व सैन्य शक्ति के बल पर बहमनी साम्राज्य का विस्तार किया। इनकी सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि 1472 ई. में गोवा पर अधिकार थी।
उसने भूमि की पैमाइश व लगाव निर्धारण की जाँच कराई। महमूद गवा विद्वानों का सरक्षण था। उसने बीदर में महाविद्यालय की स्थापना कराई। गवा ने ग्रन्थ लिखे। जो थे- रौजत-उल-इन्शा और दीवार-ए-असरा।
महमूद गवा अफाकियॉ व दक्कनियो के बीच की दलीय गुटबंदी का शिकार हो गया और महमूद तृतीय ने इसे 1481 में मृत्युदण्ड दे दिया गया।
महमूद गवा की मृत्यु के साथ ही बहमनी साम्राज्य का पतन तीव्र हो गया।बहमनी वंश का अन्तिम सुल्तान कलीमुल्ला शाह था। 1527 ई. में उसकी मृत्यु के साथ बहमनी साम्राज्य का अंत हो गया। उसके स्थान पर पाँच नवीन राजवंशों का उदय हुआ।
बरार -
सबसे पहले बहमनी साम्राज्य से बरार 1484 ई. में फतहउल्ला इमादशाह के नेतृत्व में स्वतंत्र हुआ। इसने इमादशाही वंश की स्थापना की।
बीदर -
अमीर अली बरीद ने 1527 ई. में बीदर में स्वतंत्र बरीदशाही वंश की स्थापना की। यह बहमनी साम्राज्य का अंतिम वजीर (प्रधानमंत्री) था।
बीदर, बहमनी साम्राज्य से स्वतंत्र होने वाला अंतिम राज्य था।
अहमदनगर -
अहमद नगर राज्य की स्थापना मलिक अहमद ने 1490 ई. में किया एवं निजामशाही वंश की नींव रखी।
मलिक अहमद ने ही 1490 ई. में अहमदनगर शहर की स्थापना की तथा अपनी राजधानी जुन्नैर से वहाँ स्थानांतरित कर दी।
बुरहाल निजामशाह-
मलिक अहमद की मृत्यु के बाद उसका पुत्र बुरहाल 1508 ई. में शासक बना। अहमदनगर सुल्तानों में वह पहला था जिसने निजामशाह की उपाधि धारण की।
मुर्तजा निजाम शाह (1565-1588 ई.) -
इसके काल मे मुगलो ने पहली बार अहमदनगर पर आक्रमण किया। मुर्तजा निजामशाह ने बराबर को 1575 ई. में अहमदनगर में मिलाया।
बुरहान निजाम शाह द्वितीय (1591-95 ई.)-
इसकी मृत्यु के बाद चाँद बीबी (बीजापुर के अली आदिल शाह की पत्नी) ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
मलिक अम्बर-
यह अबीसीनियाई दास था। जिसने मुर्तजा द्वितीय (1601-1610 ई.) को सुल्तान घोषित कर मुगलों के विरुद्ध अहमदनगर की कमान सभाली।
मलिक अम्बर ने दक्षिण में टोडरमल की भूमि व्यवस्था के आधार पर रैयतबाड़ी (जाब्ती) व्यवस्था लागू की तथा भूमि को ठेके पर देने की प्रथा समाप्त की। हुसैन तृतीय अहमद नगर का अंतिम शासक था। इसे शाहजहाँ ने ग्वालियर के किले में कैद करवा लिया।
बीजापुर-
बीजापुर के सूबेदार यूसुफ आदिल खाँ ने 1489-90 ई. में बीजापुर को स्वतंत्र घोषित कर आदिलशाही वंश की स्थापना की। वह अपने को तुर्की के सुल्तान का वंशज मानता था।
1510 ई. में पुर्तगालियों ने यूसुफ आदिल खाँ से गोवा छीन लिया।
इब्राहीम आदिलशाह (1534-1558 ई.)-
इब्राहीम बीजापुर का पहला शासक था जिसने शाह की उपाधि धारण की।
अली आदिलशाह-
उसने अकबर से भी पहले कैथोलिक मिशनरियों को अपने दरबार मे बुलाया। अली आदिलशाह ने अपने पुस्तकालय में संस्कृत के विद्वान वामन पंडित को नियुक्त किया।
इब्राहीम आदिलशाह द्वितीय (1580-1627 ई.)-
वह महान विद्वान एव उदार शासक था। उसने उदार द्रष्टिकोण के कारण प्रजा उसे जगत गुरु भी कहती थी। इब्राहीम आदिलशाह द्वितीय ने हिंदी गीत सग्रह किताब-ए-नौरस की रचना की।
इब्राहीम के शासन काल मे फरिश्ता ने तारीख-ए-फरिश्ता (गुलशन-इब्राहीम) नामक ऐतिहासिक ग्रन्थ की रचना की। इब्राहीम आदिल शाह द्वितीय ने उर्दू को राजकीय भाषा बनाया।
मुहम्मद अली आदिलशाह द्वितीय (1627-1672 ई.)-
वह इब्राहीम का पुत्र व उत्तराधिकारी था। जिसने शाहजहाँ से 1636 ई. में सन्धि कर मुगल अधीनता स्वीकार की।
1686 ई. में औरंगजेब ने बीजापुर को मुगल साम्राज्य में मिला लिया। इस समय बीजापुर का सुल्तान सिकन्दर आदिलशाह था।
गोलकुण्डा-
गोलकुण्डा के कुतुबशाही वंश के राज्य की स्थापना कुलीशाह ने 1512 या 1518 ई. में की।
इब्राहीम (1550-80 ई.)-
इब्राहीम गोलकुण्डा का पहला सुल्तान था, जिसने कुतुबशाह की उपाधि धारण की। वह विजयनगर के विरुद्ध 1565 ई. में बने मुस्लिम राज्यो के संघ में भी शामिल था।
मुहम्मद कुली कुतुबशाह (1580-1612 ई.)-
यह हैदराबाद नगर का संस्थापक था। यह दक्कनी उर्दू काव्य का जन्मदाता माना जाता हैं। उसने हैदराबाद की चार मीनार का निर्माण कराया।
अब्दुल्ला कुतुबशाह ने 1636 ई. में मुगलो से सन्धि कर ली तथा मुगल बादशाह शाहजहाँ का नाम खुतबा व गोलकुण्डा के सिक्कों में सम्मिलित किया।
1687 ई. में औरगजेब ने गोलकुण्डा को मुगल साम्राज्य में मिला लिया व सुल्तान अबुल हसन कुतुबशाह को बन्धी बनाकर दौलताबाद के किले में भेज दिया।
Comments
Post a Comment