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खिलजी वंश | खिलजी वंश के प्रमुख शासक | khilji vansh ke pramukh shasak | अलाउद्दीन खिलजी इतिहास | दिल्ली सल्तनत में खलजी वंश
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दिल्ली सल्तनत में खिलजी वंश मध्यकालीन भारत का इतिहास
गुलाम वंश के बाद दिल्ली सल्तनत पर खिलजी वंश के शासकों का अधिकार हो गया था।
जलालुद्दीन फिरोज खिलजी, 'खिलजी वंश' का संस्थापक था। वह जून 1920 ई. में सुल्तान बना। धोखे से अलालुद्दीन खिलजी ने 20 जुलाई 1296 ई. को उसका वध करा दिया।
शासन प्रबन्ध को सगठित किया। राजनीति में मुल्ला, मौलवियों के हस्तक्षेप का विरोध किया। सिक्कों पर अपना उल्लेख 'द्वितीय सिकन्दर' के रूप में किया।
खलीफा की सत्ता को मान्यता प्रदान की तथा 'यस्मिन-उल-खिलाफ-नासिरी-अमीर-उल-मुमिनिन' की उपाधि धारण की। सैनिकों को नकद वेतन देने की व्यवस्था की। सैनिकों का वेतन 238 टका वार्षिक निश्चित किया।
इससे पूर्व सैनिकों को वेतन के स्थान पर भूमि दी जाती थी। सैनिकों की हुलिया लिखने का नियम बनाया। वह प्रथम सुल्तान था, जिसने घोड़ों पर दाग लगवाने की प्रथा प्रारम्भ की। नवीन दुर्गा का निर्माण करवाया। डाक व्यवस्था को उत्तम बनाया।
रणथम्भौर पर हम्मीर देव का शासन था। जुलाई 1301 ई. में अलाउद्दीन ने रणथम्भौर के किले पर अधिकार कर लिया।
उस समय चितौड़ पर राणा रतन सिंह का शासन था। जनवरी 1303 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने चितौड़ पर आक्रमण कर चितौड़ के किले पर अधिकार हो गया।
मालवा का शासक महलक देव था। 1305 ई. में आईन-उल-मुल्क ने मालवा को विजित किया।
मारवाड़ पर परमार राजपूत शीतलदेव का शासन था। अलाउद्दीन खिलजी ने 1308 ई. में आक्रमण कर दिया। बाध्य होकर शीतलदेव को अलाउद्दीन से संधि करनी पड़ी।
दिवान-ए-रियासत- यह यह व्यापारियों पर नियंत्रण रखता था।
शहना-ए-मण्डी- यह बाजार का दरोगा होता था।
मुहतासब- यह नाप-तौल का निरीक्षण किया करता था। अलाउद्दीन ने कालाबाजारी और मुनाफाखोरी पर पूर्णरूप से प्रतिबंध लगा दिया। राशन व्यवस्था का प्रारम्भ किया।
राज्य की आय बढ़ाने के उद्देश्य से उसने राजस्व नीति निर्धारण में भूमि की नाप कराई तथा यह पता लगवाया की कितनी भूमि पर खेती होती है तथा उससे राज्य को कितनी आय होती है।
चारागाह, भवनों पर भी कर लगा दिया।
अलाउद्दीन खलजी की इस राजस्व नीति के परिणाम स्वरूप राज्य की आय में वर्द्धि हुई। अलाउद्दीन खलजी ने 1296 ई. से 1316 ई. तक शासन किया। जनवरी 1316 ई. को उसकी मृत्यु हो गई।
कुछ महत्वपूर्ण विषय :-
अलालुद्दीन खिलजी-
सुल्तान बनते ही अलालुद्दीन खिलजी ने दिल्ली की सीमाओं में विस्तार करना प्रारम्भ किया। उसने उत्तर एवं दक्षिण के अन्य राज्यों को भी जीत कर साम्राज्य की सीमाओं में विस्तार किया।शासन प्रबन्ध को सगठित किया। राजनीति में मुल्ला, मौलवियों के हस्तक्षेप का विरोध किया। सिक्कों पर अपना उल्लेख 'द्वितीय सिकन्दर' के रूप में किया।
खलीफा की सत्ता को मान्यता प्रदान की तथा 'यस्मिन-उल-खिलाफ-नासिरी-अमीर-उल-मुमिनिन' की उपाधि धारण की। सैनिकों को नकद वेतन देने की व्यवस्था की। सैनिकों का वेतन 238 टका वार्षिक निश्चित किया।
इससे पूर्व सैनिकों को वेतन के स्थान पर भूमि दी जाती थी। सैनिकों की हुलिया लिखने का नियम बनाया। वह प्रथम सुल्तान था, जिसने घोड़ों पर दाग लगवाने की प्रथा प्रारम्भ की। नवीन दुर्गा का निर्माण करवाया। डाक व्यवस्था को उत्तम बनाया।
-उत्तर भारत की विजय-
अलालुद्दीन खिलजी ने उत्तर भारत मे गुजरात, रणथम्भौर, चितौड़, मालवा, जालौर तथा मारवाड़ को भी जीत कर साम्राज्य की सीमाओं में विस्तार किया।
-गुजरात पर विजय-
गुजरात पर बघेलराय कर्ण का शासन था। 1298 ई. में अलाउद्दीन ने उलुग खाँ तथा नुसरत खाँ को गुजरात पर आक्रमण के लिए भेजा। गुजरात मे ही नुसरत विजय से पूर्व मार्ग में ही जैसलमेर को भी जीत लिया।रणथम्भौर पर हम्मीर देव का शासन था। जुलाई 1301 ई. में अलाउद्दीन ने रणथम्भौर के किले पर अधिकार कर लिया।
उस समय चितौड़ पर राणा रतन सिंह का शासन था। जनवरी 1303 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने चितौड़ पर आक्रमण कर चितौड़ के किले पर अधिकार हो गया।
मालवा का शासक महलक देव था। 1305 ई. में आईन-उल-मुल्क ने मालवा को विजित किया।
मारवाड़ पर परमार राजपूत शीतलदेव का शासन था। अलाउद्दीन खिलजी ने 1308 ई. में आक्रमण कर दिया। बाध्य होकर शीतलदेव को अलाउद्दीन से संधि करनी पड़ी।
-बाजार नियंत्रण-
अलाउद्दीन एक सफल विजेता होने के साथ ही एक कुशल प्रशासक भी था। उसने नई आर्थिक नीति का संचालन किया। बाजारों पर नियंत्रण हेतु अनेक नवीन पदों का सृजन किया-दिवान-ए-रियासत- यह यह व्यापारियों पर नियंत्रण रखता था।
शहना-ए-मण्डी- यह बाजार का दरोगा होता था।
मुहतासब- यह नाप-तौल का निरीक्षण किया करता था। अलाउद्दीन ने कालाबाजारी और मुनाफाखोरी पर पूर्णरूप से प्रतिबंध लगा दिया। राशन व्यवस्था का प्रारम्भ किया।
राज्य की आय बढ़ाने के उद्देश्य से उसने राजस्व नीति निर्धारण में भूमि की नाप कराई तथा यह पता लगवाया की कितनी भूमि पर खेती होती है तथा उससे राज्य को कितनी आय होती है।
चारागाह, भवनों पर भी कर लगा दिया।
अलाउद्दीन खलजी की इस राजस्व नीति के परिणाम स्वरूप राज्य की आय में वर्द्धि हुई। अलाउद्दीन खलजी ने 1296 ई. से 1316 ई. तक शासन किया। जनवरी 1316 ई. को उसकी मृत्यु हो गई।
कुछ महत्वपूर्ण विषय :-
- गुलाम वंश के संस्थापक कौन थे?
- तुगलक वंश की स्थापना कब हुई?
- दक्षिण भारत का इतिहास
- सोलह महाजनपद क्या है?
- 'बौद्ध धर्म' 'जैन धर्म' क्या है?
शहाबुद्दीन उमर-
अलाउद्दीन की मृत्यु के उपरान्त अल्प-वयस्क शहाबुद्दीन उमर को सुल्तान बना मलिक काफूर वास्तविक शासन बन बैठा।
कुतुबुद्दीन मुबारक खिलजी-
अन्त में उमर को हटा वह अप्रैल 1316 ई. को कुतुबुद्दीन मुबारक के नाम से दिल्ली का सुल्तान बना। अंत में उसके वजीर खुसरो ने 15 अप्रैल, 1320 ई. को उसका वध करवा दिया।
नासिरुद्दीन खुसरोशाह-
खुसरोशाह एक भारतीय मुसलमान था। उसने अमीरों तथा अपने पदाधिकारियों के पदों को स्थायी कर दिया तथा विरोधी सरदारो का वध करवा दिया। 1320 ई. को दिल्ली के निकट गाजी मलिक व खुसरोशाह के मध्य युद्ध हुआ, जिसमे खुसरोशाह वीरता से लड़ा, किन्तु पराजित हुआ और मारा गया।
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